ऑपरेशन सिंदूर: शौर्य या पराक्रम नहीं, सैन्य अभियान का नाम “सिंदूर’ क्यों

आखिर किसी सैन्य अभियान का नाम ‘सिंदूर’ क्यों रखा गया।

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नई दिल्ली: पहलगाम में हुए बर्बर आतंकवादी हमले का भारत ने मंगलवार रोत को जोरदार जवाब दिया है। भारतीय सैन्य बलों ने पाकिस्तान और पीओके में 9 स्थानों को निशाना बनाकर हमला किया। भारतीय सेनाओं के निशाने पर आतंकवादी और उनके आका रहे। लेकिन एक सवाल जरूर उठता है कि आखिर किसी सैन्य अभियान का नाम ‘सिंदूर’ क्यों रखा गया। सिंदूर हिंदू महिलाओं के सुहाग और प्रेम की निशानी है तो यह नाम आखिर हमले के ऑपरेशन का क्यों रखा गया।

किसी भी गुप्त अभियान या सैन्य ऑपरेशन का नाम काफी विचार-विमर्श के बाद रखा जाता है। ऑपरेशन के लिए ऐसे नाम का चयन किया जाता है जो कि उस अभियान की प्रकृति से मिलता-जुलता हो। सैन्य अभियानों के नाम अधिकतर विजय, शौर्य, पराक्रम आदि रखे जाते हैं, क्योंकि ऐसे नाम सेना की वीरता और जोश को प्रदर्शित करते हैं। लेकिन इस अभियान का नाम सिंदूर रखने के पीछे भावनात्मक कारण के साथ संवेदनशील सोच झलकती है। सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की जो तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट की है, उसमें भी यह संवेदनशीलता साफ झलकती है।

सिंदूर महिलाओं के सुहाग की निशानी होने के साथ ही मातृशक्ति का भी प्रतीक है। भारत, भारतीय समाज हमेशा से मातृशक्ति का उपासक रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन में भी मतृशक्ति का विशेष सम्मान है। दुर्गा पूजा में सिंदूर खेला एक खास आयोजन होता है। देवी दुर्गा असुरों की संहारक हैं। यह एक कारण हो सकता है कि आतंकवादियों के खिलाफ अभियान को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम दिया गया।

पहलगाम में बीते 22 अप्रैल को हुआ आतंकवादी हमला काफी बर्बर और हृदयविदारक था। कश्मीर की खूबसूरत वादियों में घूमने आए पर्यटकों को आतंकवादियों ने चुन-चुन कर निशाना बनाया। खास बात यह थी कि आतंकवादियों ने मारने से पहले लोगों के नाम पूछे, उनका धर्म पूछा। इस हमले में एक और अलग बात थी कि केवल पुरुषों को ही आतंकवादियों ने गोलियों से छलनी किया। पर्यटन के लिए आईं 26 महिलाओं की मांग खूनी दरिंदों ने सूनी कर दी। इनमें से कुछ महिलाएं तो बहुत कम वक्त पहले विवाह के बंधन में बंधी थीं। इन्हीं महिलाओं में से एक थी हिमांशी नरवाल। उनके पति लफ्टिनेंट विनय नरवाल को भी आतंकियों ने मार डाला। संभवतः इन महिलाओं की सिंदूर का बदला दर्शाने के लिए इस अभियान का नाम ‘ऑपरेशन सिंदूर’ रखा गया होगा। हालांकि, अभी आधाकिरिक रूप से इस नामकरण के बारे में कुछ नहीं बताया गया है, लेकिन इतना तो तय है कि इस अभियान के बाद हिमांशी और दूसरी महिलाओं के मन में थोड़ा तो संतोष जरूर हुआ होगा।

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