वेब सीरीज : ब्लैक वारंट
ओटीटी प्लेटफार्म : नेटफ्लिक्स
क्रिएटर : विक्रमादित्य मोटवाने, सत्यांशु सिंह
निर्देशक : विक्रमादित्य मोटवाने, सत्यांशु सिंह, अरकेश अजय, रोहिन रविंद्रन नायर, अंबिका पंडित
कलाकार : जहान कपूर, परमवीर चीमा, राहुल भट, अनुराग ठाकुर, सिद्धांत गुप्ता, राजेंद्र गुप्ता, राजर्शि देशपांडे, तोता रायचौधरी आदि
एपिसोड्स : 7 (45-50 निनट)
जेल। एक ऐसी जगह जिसके बारे में जानते सब हैं, लेकिन कोई नहीं चाहेगा कि उसे कभी वहां जाना पड़े। हम सबके पास जेलों से जुड़ी कुछ कहानियां हैं, कुछ सुने-सुनाए किस्से हैं। हिंदी फिल्में देखने वाले व्यक्ति के मन में जेलर को लेकर एक अलग ही छवि होती है। जिन लोगों ने कालिया के रघुवीर सिंह (प्राण) या कर्मा के राणा विश्व प्रताप सिंह (दिलीप कुमार) को पर्दे पर देखा हो, उनके मन में जेलर की छवि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में होगी जो बेहद सख्तमिजाज और अनुशासन प्रिय हो। लेकिन, क्या यही सच्चाई है? क्या जेल ऐसी ही होती है या जेलर ऐसे ही होते हैं? तो जेल की सच्चाई को दिखाती एक सीरीज नेटफ्लिक्स पर आई है। नाम है ब्लैक वारंट। क्रिएटर हैं विक्रमादित्य मोटवाने और सत्यांशु सिंह। मोटवाने और सिंह के साथ ही निर्देशन की कमान संभाली है अरकेश अजय, रोहिन रविंद्रन नायर और अंबिका पंडित ने। यह सीरीज सुनेत्रा चौधरी और सुनील गुप्ता की इसी नाम की किताब पर आधारित है।
कहानी/विश्लेषणः सीरीज की कहानी है दिल्ली की तिहाड़ जेल की। यहां एएसपी नियुक्त होते हैं सुनील गुप्ता। सुनील एक शांत स्वभाव के थोड़े शर्मीले और थोड़ा कम बोलेने वाले व्यक्ति हैं। उनके साथ दो और एसीपी नियुक्त होते हैं विपिन दहिया और शिवराज सिंह मंगट। तीनों की जल्द ही दोस्ती हो जाती है। सुनील के दोस्तों, उनके प्रभारी डीएसपी राजेश तोमर, जेल अधीक्षक और यहां तक कि उनके परिवार के लोगों को लगता है कि सुनील इस कार्य के लिए उचित व्यक्ति नहीं हैं। जेलर की नौकरी के लिए जिस तरह के स्किल्स की जरूरत होती है, सुनील के पास वह नहीं है। यहां तक कि उनकी कद-काठी भी कमजोर जैसी ही है। लेकिन सुनील अपनी लगी-लगाई नौकरी कैसे छोड़ दे। यह सीरीज सुनील के व्यक्तिगत विकास की भी कहानी है। वह जेल में पेश आने वाली चुनौतियों से निपटना तो सीखता ही है, उन गुणों (अवगुणों) को भी अपना लेता है जो खूंखार अपराधियों के बीच रहने और उन्हें अनुशासन में रखने के लिए जरूरी समझी जाती हैं।
यह सीरीज जेल की चारदीवारी के अंदर की सच्चाई को हमारे सामने लाती है। किसी भी जेल में कैदियों को अनुशासन में रखना और शांति बनाए रखना काफी कठिन काम है। वह भी ऐसी स्थिति में जब जेलों में क्षमता से कई गुणा कैदी हों, अंडर ट्रायल्स की भीड़ जमा हो और कर्मचारी हों कम। जेलों में अपना शक्ति संतुलन होता है, गैंग्स की अपनी लड़ाई चलती है, कई तरह के अपराध होते हैं। सीरीज को देखते हुए जेलरों के इस संघर्ष, उनके तनाव को हम अच्छे से समझ पाते हैं। कहानी ज्यादातर जेल की ही है, थोड़े समय के लिए अलग-अलग पात्रों के साथ बाहर आती है। इसके साथ ही, जहां जो जेल बनाई गई है, जो माहौल क्रिएट किया गया है, वह शानदार है। प्रोडक्शन डिजाइनर ने 80 के दशक को पर्दे पर बाखूबी उतारा है।
कहानी है 80 के दशक की। उस समय के चर्चित मामलों की झलक भी हमें दिखती है। चाहे वह रंगा-बिल्ला की फांसी हो या चार्ल्स शोभराज या पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी दंगों की काली परछाई, सबकुछ यहां समेटा गया है। कुछ दृश्य तो काफी इंटेंस है। रंगा-बिल्ला को जब फांसी होती है, उस वक्त कैसे तैयारियां की गईं, बाहर से जल्लाद बुलाए गए और मौत के दरवाजे पर खड़े दोनों अपराधियों के क्या मनोभाव थे, सबकुछ काफी विस्तार और गहराई से दिखाया गया है।
हालांकि, यहां जिस तरह से चार्ल्स शोभराज के किरदार को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है, वह देखकर अखरता है। साथ ही, लगता है कि रंगा-बिल्ला को लेकर कुछ सहानुभूति पैदा करने की कोशिश की गई है। इसे लेकर बहस को है, लेकिन दमदार नहीं लगती, क्योंकि यहां पीड़ितों की कोई बात तो दिखाई ही नहीं गई है। रंगा और बिल्ला दुर्दांत अपराधी थे जिन्होंने दो मासूम बच्चों को निर्दयता से मारा था। उनसे सहानुभूति सिर्फ इसलिए नहीं हो सकती कि उन्होंने बार-बार अपने बयान बदले थे।
अभिनयः सुनील गुप्ता के किरदार में हैं जहान कपूर। अपना किरदार इन्होंने जोरदार ढंग से निभाया है। परमवीर चीमा भी वर्दी में जंचे हैं। राहुल भट, अनुराग ठाकुर, सिद्धांत गुप्ता, राजेंद्र गुप्ता, राजर्शि देशपांडे सभी कलाकारों ने सीरीज में जान भर दी है।
तकनीकी पक्षः सिनोमेटोग्राफी अच्छी है। बैकग्राउंड स्कोर दृश्यों को और उभारने वाला है। प्रडक्शन डिजाइन तारीफ के काबिल है।
पेरेंटल गाइडेंसः यह सीरीज वैसे तो साफ-सुथरी है, लेकिन इसमें गालियों को प्रयोग बहुत अधिक है। कुछ हिंसक दृश्य हैं। साथ ही फांसी वाले दृश्य विचलित कर सकते हैं।
रेटिंगः 4 स्टार