फिल्म : सिकंदर का मुकद्दर
ओटीटी : नेटफ्लिक्स
निर्देशक : नीरज पांडे
लेखक : नीरज पांडे और विपुल के रावल
कलाकार : जिमी शेरगिल, अविनाश तिवारी, तमन्ना भाटिया, दिव्या दत्ता, जोया अफरोज, ऋधिमा पंडित, राजीव मेहता, शांतनु घटक, प्रफुल जोशी
अवधिः 2 घंटा 20 मिनट
नीरज पांडे का नाम आते ही जेहन में आते हैं ‘ए वेडनेसडे’, ‘स्पेशल 26’ और ‘बेबी’ जैसी फिल्मों के नाम। इन फिल्मों की बदौलत नीरज पांडे ने दर्शकों के बीच अपनी अलग जगह बनाई। लेकिन इन्हीं नीरज पांडे ने ‘औरों में कहां दम था’ जैसी फिल्म भी बनाई है। तो अब, नीरज की नई फिल्म ‘सिकंदर का मुकद्दर’ नेटफ्लिक्स पर आई है। यह फिल्म सीधे ओटीटी पर रिलीज हुई है। निर्देशक की कुर्सी संभालने के साथ-साथ नीरज पांडे ने इस फिल्म के लेखन में भी योगदान दिया है।
कथानकः फिल्म की शुरूआत एक चोरी से होती है। मुम्बई में आभूषणों की एक प्रदर्शनी चल रही होती है। पुलिस का कड़ा पहरा है यहां। इतने में एक फोन आता है कि चार लोग नकली पहचान-पत्र लेकर प्रदर्शनी में आ चुके हैं। उनके पास हथियार भी हैं। पुलिस अधिकारी आनन-फानन में पैनिक बटन दबा देता है। हॉल में उपस्थित सभी लोगों को एक स्थान में इकट्ठा किया जाता है। पुलिस मुठभेड़ में चारों अपराधी को मार गिराती है। इसके बाद जब सभी लोग अपनी जगहों पर लौटते हैं तो एक काउंटर के सेल्स पर्सन को पता लगता है कि वहां से 5 बेशकीमती लाल हीरे गायब हैं। मामला और पेचीदा हो जाता है। और फिर जांच के लिए आते हैं जसविंदर सिंह (जिमी शेरगिल)। शुरुआती पूछताछ के बाद तीन लोग उनके संदेह के घेरे में हैं। इनमें से एक है सिकंदर शर्मा (अविनाश तिवारी), जो वहां कंप्यूटर संबंधी काम के लिए आया था। चोरी वाले स्टॉल के कर्मचारी कामिनी सिंह (तमन्ना भाटिया) और मंगेश देसाई (राजीव मेहता) को भी पुलिस आरोपी बनाती है। तो फिर जांच में क्या सामने आता है? कौन था जो मौके पर चौका मार गया, यही कहानी आप इस फिल्म में देखते हैं।
विश्लेषणः फिल्म की शुरूआत काफी रोमांचक ढंग से होती है। शुरूआत से ही फिल्म दर्शकों का ध्यान खींचती है और उन्हें बांध लेती है। लेकिन शुरुआत की यह खास बात बहुत आगे तक नहीं चल पाती है। कहानी के लेखन और निर्देशन की कमियां खटकने लगती हैं। अब सोचिये कि वह कैसी अदालत होती है जहां जांच अधिकारी तो कठघरे में होता है और आरोपी सामने की बेंच पर। कहानी में कई मोड़ आते हैं और कुछ राज बनाए रखने का भी प्रयास है। हालांकि, अधिकतर चीजों का अंदाजा पहले ही लगाया जा सकता है। इसमें भी अच्छी बात यह है कि यदि कोई दर्शक यह अंदाजा लगा भी ले कि हीरे किसने चुराए होंगे, एक सवाल तो फिर भी रह जाता है कि आखिर कैसे? और इस कैसे का जवाब अंत में मिलता है। इसी कैसे की वजह से दर्शकों पूरी फिल्म देखनी होगी। हालांकि, एक-दो सब प्लॉट्स भी यहां हैं, लेकिन वे अच्छे से डेवलप नहीं किए गए हैं।
एक बात तो मुझे समझ नहीं आती कि क्या यह जरूरी है कि जो तेज-तर्रार जांचकर्ता हो, उसकी निजी जिंदगी उलझनों से भरी होनी चाहिए। कोई पुलिस अधाकारी अपनी जिंदगी में खुशहाल होकर भी जांच की बारीकियों को समझने में माहिर हो। फिल्मों और सीरीज में यह चीज अब क्लीशे हो गई है।
तो अगर आप सोचते हैं कि ‘ए वेडनेसडे’, ‘स्पेशल 26’ का मजा आपको नीरज पांडे देने वाले हैं तो आपको निराशा होगी। लेकिन एक बार देखने के लिहाज से फिल्म एकदम बोर भी नहीं है और ओटीटी पर देखने के लिहाज से ठीक ही कही जाएगी।
अभिनयः इस फिल्म में भी जिमी शेरगिल का कमाल दिखता है। जिमी ने यहां जिस तरह को रोल किया है, वैसी भूमिकाओं के वह अब एक्सपर्ट हो चुके हैं। अविनाश तिवारी अच्छे हैं। तमन्ना भाटिया और दूसरे कलाकारों का काम सराहनीय है। दिव्या दत्ता की भूमिका कम है, लेकिन थोड़े वक्त में ही वह अपनी छाप मजबूती से छोड़ती हैं।
तकनीकी पक्षः फिल्म तकनीकी तौर पर अच्छी है। कई जगहों पर बैकग्राउंड स्कोर दृश्य का रोमांच बढ़ाता है। फिल्म के गाने साधारण हैं और फिल्म में ही ठीक लगते हैं।
नग्नताः यह एक साफ-सुथरी फिल्म है। कहीं भी गाली-गलौज या अंतरंगता के दृश्य नहीं हैं। चाहें तो परिवार के साथ देख सकते हैं।
रेटिंगः 3 स्टार